मन आंगन book review by sweta sharma

मन आंगन गरिमा वर्मा की पुस्तक है जो वर्तमान में अमेरिका में रहती है पर विदेश में रहते हुए भी इन्होंने अपने मन के आंगन में से अपने घर के आंगन की यादों को कभी खुद से दूर नहीं होने दिया। इन्होंने विदेश में रहकर भी अपने व अपने बच्चों के मन में उस आंगन की  यादों को हमेशा जीवित रखा है ।

"आंगन एक धरोहर है जिसे नष्ट न होने दें।"

आंगन की घर में अहम भूमिका होती है, आंगन परिवार के सुख - दुख का प्रत्यक्ष प्रमाण होता है। आंगन में बिताए सारे पल खास होते हैं। मां- पापा, दादा - दादी से अक्सर आंगन का महत्व में जानने को मिलता है पर आज मन आंगन पढ़कर अपने बड़ों की बातें मन में ताजा हो जाती है। पहले के घरों में बड़ा खुला आंगन, तुलसी का चबूतरा, परिवार की मौज-मस्ती का प्रमाण है आंगन। परंतु वर्तमान में शहरीकरण के कारण बड़ी बिल्डिंग इमारतें बनने से लोगों के पास समय की कमी और उनकी जरूरते बढ़ने से आंगन का अस्तित्व मिट सा गया है । लेकिन दो पल निकाल कर अपने बचपन की यादों के अस्तित्व को जिंदा रखना भी काफी है। क्योंकि वर्तमान में संयुक्त परिवार बहुत कम ही रह गए हैं ऐसे में आने वाली पीढ़ी को उससे अवगत करवाना परिवार की जिम्मेदारी है।

आंगन ही इस पुस्तक का मुख्य किरदार है जो नायक नायिका दोनों की भूमिका अदा करता है पुस्तक की शुरुआत संयुक्त परिवार के मौज मस्ती कोलाहल से होती है परंतु जैसे जैसे समय बढ़ता जाता है लोगों की जरूरत व समय की वजह से अंत तक आंगन सूना ही रह जाता है महज कुछ लोगों के साथ ही। 

यह पुस्तक लोगों के मन में छुपी हुई यादों को फिर से जीवित करने में सफल रही है पुस्तक पढ़ते पढ़ते आप भी उन पंक्तियों को जीवित होता महसूस करेंगे।

समीक्षक - श्वेता शर्मा
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